बीरबल और मित्र का वचन | Birbal And Friend’s Promise

फ्रेंड्स, बीरबल और मित्र का वचन (Birbal And Friend’s Promise Story In Hindi) बीरबल और उसके एक मित्र की कहानी है. इस कहानी में मित्रता के महत्व के बारे में बताया गया है और मित्रता को देखने के नज़रिये के बारे में बताया गया है. बीरबल बड़े ही मज़ेदार अंदाज़ में मित्रों के संबंधों की गहराई और उसके मूल्य के बारे में अपने मित्र को अहसास दिलाते हैं. चुटीले अंदाज़ में ये कहानी गहरी बात कह देती है. पढ़िए ये मनोरंजक अकबर बीरबल की कहानी (Hindi Akbar Birbal Story) :

Birbal And Friend’s Promise Story 

Birbal And Friend’s Promise Story In Hindi
Birbal And Friend’s Promise Story | Birbal And Friend’s Promise Story

एक दिन बीरबल अपने मित्र के साथ भ्रमण के लिए निकला. दोनों बहुत दिनों बाद मिले थे. इसलिए बातचीत करते हुए न समय का पता चला, न ही दूरी का. चलते-चलते दोनों बहुत दूर निकल आये.

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उनके मार्ग में एक नदी पड़ी. उन्हें नदी पार कर दूसरे छोर पर जाना था. नदी पार करने का एक ही माध्यम था. उस पर बना हुआ एक पुराना पुल.

पुल बहुत संकरा था. एक बार में केवल एक ही व्यक्ति द्वारा उसे पार किया जा सकता था. बरसात के दिन थे, तो पुल पर काई जमी हुई थी. इसलिए उसे संभलकर पार करने की आवश्यकता थी.

पहले बीरबल पुल पार करने के लिए बढ़ा और सावधानी से धीरे-धीरे चलते हुए सही-सलामत नदी के दूसरे छोर पर पहुँच गया. अब मित्र की बारी थी. वह भी पूरी सावधानी से पुल पार करने लगा. लेकिन पूरी सावधानी बरतने के बाद भी नदी के दूसरे छोर तक पहुँचने के कुछ दूर पहले उसका संतुलन बिगड़ गया और वह नदी में जा गिरा.

मित्र को नदी में गिरते देख बीरबल फुर्ती से अपना हाथ बढ़ाया और बोला, “मित्र, जल्दी से मेरा हाथ पकड़ लो. मैं तुम्हें बाहर खींच लूंगा.”

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मित्र ने वैसा ही किया. उसने बीरबल का हाथ पकड़ लिया और बीरबल उसे किनारे की ओर खींचने लगा.

बीरबल पूरा ज़ोर लगाकर उसे बाहर खींच रहा था कि वह बोल पड़ा, “मेरे प्राण बचाने के लिए धन्यवाद बीरबल. मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि इसके लिए मैं तुम्हें एक बड़ी धन राशि पुरुस्कार स्वरुप दूंगा.”

यह सुनना था कि बीरबल बे कहा, “धन्यवाद.” और मित्र का हाथ छोड़ दिया. मित्र फिर से पानी में गिर गया. लेकिन वह तब तक लगभग किनारे पहुँच चुका था. थोड़ी मशक्कत कर वह नदी के बाहर आ गया.

बाहर निकलते ही उसने बीरबल से पूछा, “क्यों? तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मेरा हाथ अचानक छोड़ क्यों दिया?”

“अपना पुरुस्कार लेने के लिए” बीरबल तपाक से बोला.

“पुरुस्कार!!! लेकिन वह तो मैं तुम्हें नदी से बाहर निकलने के बाद देता. तुम मेरे सुरक्षित बाहर निकलने की प्रतीक्षा तो करते.” मित्र बोला.

“तुम भी मुझे पुरुस्कार देने की बात कहने के पहले पानी से बाहर आ जाने की प्रतीक्षा कर लेते मित्र.” बीरबल ने शांत भाव से उत्तर दिया.

बीरबल उसे समझाना चाहता है कि मित्र कभी भी एक-दूसरे की सहायता पुरुस्कार प्राप्त करने के लिए नहीं करते. बीरबल की बात समझकर उसके मित्र ने उससे क्षमा मांगी और उसका धन्यवाद भी किया.

सीख (Moral of the story)

मित्रता धन से बढ़कर है. उसे धन के तराजू में नहीं तौलना चाहिए.


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