फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम हाथी और बंदर की कहानी (Elephant And Monkey Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. Hathi Aur Bandar Ki Kahani में सदा आपस में लड़ने वाले हाथी और बंदर के मध्य श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए प्रतियोगिता होती है. कौन जीतता है? क्या उनकी हाथी और बंदर की दोस्ती हो पाती है? जानने के लिए पढ़िए पूरी कहानी :
Elephant And Monkey Story In Hindi
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एक जंगल में एक हाथी और एक बंदर रहते हैं। विशाल शरीर वाला हाथी बलशाली था। वह अपने बल से बड़े-बड़े पेड़ों को उखाड़ फेंकता था। अपने विशाल पैरों के नीचे छोटे पौधे और झाड़ियों को रौंद डालता था। वहीं बंदर तेज और फुर्तीला था। पलक झपकते ही उछलता-कूदता ऊँचे पेड़ पर चपलता से चढ़ जाया करता था।
हाथी और बंदर दोनों को अपने-अपने गुणों पर अभिमान था और दोनों स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ समझते थे। इस बात पर प्रायः उनमें बहस होती, जो कई बार झगड़े का रूप ले लेती थी। लेकिन उसका कोई परिणाम नहीं निकलता था।
जंगल में रहने वाला एक उल्लू अक्सर हाथी और बंदर की लड़ाई देखा करता था। वह उनकी बहसबाजी और लड़ाई से तंग आ चुका था। एक दिन वह उन दोनों से बोला, “तुम दोनों की बहस मैं कई दिनों से देख रहा हूँ। आज फैसला हो ही जाये। क्यों न तुम दोनों में एक प्रतियोगिता करवाई जाये, जो जीतेगा, वो श्रेष्ठ होगा। क्या कहते हो?”
हाथी और बंदर मान गये। एक स्वर में उन्होंने पूछा, “मगर प्रतियोगिता क्या होगी?”
उल्लू बोला, “इस जंगल के पार एक दूसरा जंगल है। वहाँ एक पुराना वृक्ष है, जिस पर एक स्वर्णफल लगा हुआ है। तुम दोनों में से जो भी उस स्वर्ण फल को ले आयेगा, वह विजेता होने के साथ ही दूसरे से श्रेष्ठ होगा।”
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हाथी और बंदर के बीच प्रतियोगिता प्रारंभ हुई। बंदर फुर्ती से एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उछल-उछलकर आगे बढ़ने लगा। वहीं हाथी अपनी सूंड से रास्ते में आने वाले पेड़ों को उखाड़ता और रौंदता हुए आगे बढ़ने लगा।
कुछ ही देर में उन दोनों ने जंगल पार लिया। अब उनके सामने नदी थी, जिसे पार कर ही दूसरे जंगल में पहुँचा जा सकता था।
बंदर जल्दी से नदी में कूद गया। मगर पानी की तेज धार में वह बहने लगा। उसे बहता देख हाथी ने अपनी सूंड से पकड़कर उसे बाहर निकाला। बंदर हाथी का यह रूप देख चकित था, क्योंकि उसे आशा नहीं थी कि वह उसकी किसी भी प्रकार की सहायता करेगा। वह कृतज्ञता प्रकट करते हुए बोला, “धन्यवाद भाई! तुमने मेरी जान बचाई। अब यहाँ से आगे तो मैं जा नहीं पाऊंगा। तुम ही जाओ।”
हाथी ने उत्तर दिया, “तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ। इस तरह हम दोनों नदी पार कर लेंगे।”
बंदर हाथी की पीठ पर बैठ गया। हाथी ने बड़े आराम से नदी पार कर ली। नदी पार कर दोनों दूसरे जंगल में पहुँचे। वहाँ वे खोजते हुए उस पुराने पेड़ तक गए, जहाँ स्वर्ण फल लगा हुआ था।
हाथी ने अपने सूंड से पेड़ के तने को पकड़कर पेड़ उखाड़ने का प्रयास किया, किंतु पेड़ का तना इतना मोटा था कि वह उसे ठीक से पकड़ नहीं पाया। ऐसे में पेड़ क्या उखड़ता? वह निराश होकर बोला, “अब स्वर्ण फल तोड़ना संभव नहीं।”
बंदर बोला, “मैं प्रयास करता हूँ।”
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और वह उछलकर पेड़ की एक डाली पर चढ़ गया। उछलते-कूदते वह पेड़ की सबसे ऊपरी डाली पर पहुँचा, जहाँ स्वर्ण फल लगा हुआ था। स्वर्णफल तोड़कर वह नीचे उतर आया। फिर दोनों वापस लौट आये और उल्लू को जाकर वह स्वर्ण फल दिया।
उल्लू बोला, “इस प्रतियोगिता का विजेता है…”
उसे टोककर बंदर और हाथी एक स्वर में बोले, “नहीं उल्लू दादा! अब विजेता घोषित करने की आवश्यकता नहीं है। हम दोनों के संयुक्त प्रयास से ही यह फल लाना संभव हो पाया है। हमें समझ आ गया है कि हम दोनों के गुण अपनी-अपनी जगह श्रेष्ठ हैं। हमने फैसला किया है कि अब से हम कभी नहीं लड़ेंगे और मित्र बनकर रहेंगे।”
उल्लू का प्रयोजन सिद्ध हो चुका था। वह यही सीख दोनों को देना चाहता था।
वह बोला, “हर प्राणी एक दूसरे से भिन्न होता है। उनमें अपने गुण होते हैं और अपनी कमजोरियाँ भी होती है। कोई एक-दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है, बस भिन्न है और अपने स्तर पर श्रेष्ठ है। हमें एक दूसरे से लड़ना नहीं हैं, बल्कि सबका सम्मान कर मिल जुलकर रहना है।‘
उस दिन से हाथी और बंदर मित्र बन गये।
सीख (Hathi Aur Bandar Ki Kahani Moral)
एक दूसरे के गुणों का सम्मान कर मिलजुल कर रहें। जीवन सुखद रहेगा।
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