महाराज की वाहवाही तेनालीराम की कहानी | Maharaj Ki Wahwahi Tenali Ram Ki Kahani

महाराज की वाहवाही तेनालीराम की कहानी (Maharaj Ki Wahwahi Tenali Ram Ki Kahani, Maharaj Ki Wahwahi Tenali Raman Story In Hindi) इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। महामंत्री और सेनापति ने तेनालीराम को नीचा दिखाने और महाराज की वाहवाही लूटने के लिए तिकड़म लगाया। क्या वे सफल हो पाए? जानने के लिए पढ़िए :

Maharaj Ki Wahwahi Tenali Ram Ki Kahani 

Maharaj Ki Wahwahi Tenali Ram Ki Kahani 

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हर साल राजा कृष्णदेव राय के जन्मदिन पर विशेष आयोजन होता है। बड़े उल्लास और धूमधाम के साथ इस अवसर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। सारे राज्य के पंडित एकत्रित होकर यज्ञ और हवन करते तथा सात नदियों के जल से महाराज का अभिषेक होता था।

पूरे राज्य में उत्सव का माहौल रहता। महल में एक से बढ़कर एक कार्यक्रम होते। गीत संगीत, नृत्य, नाट्य का आयोजन किया जाता। दूर दूर से कलाकार आते और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन महाराज के सामने करते और पुरुस्कार पाते।

इन समस्त कार्यक्रमों के साथ साथ दरबारियों द्वारा महाराज को जन्मदिन का उपहार भी दिया जाता। दरबारी इस अवसर को महाराज की चाटुकारिता के रूप में लेते और प्रयास करते कि महाराज को सबसे अच्छी भेंट दें और उन्हें प्रसन्न कर दें। सभी एक से बढ़कर एक उपहार महाराज के लिए लाते, लेकिन प्रतिवर्ष तेनालीराम बाजी मार लेता।

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महामंत्री और सेनापति को सदा से तेनालीराम से जलन रही थी। वे ऐसा कोई अवसर नहीं छोड़ते थे, जब उसे नीचा न दिखा सकें। जन्मदिन पर भेंट देते समय तेनालीराम से मुंह की खाना उन्हें बहुत बुरा लगता था। इसलिए इस साल उन्होंने योजना बनाई कि तेनालीराम को दरबार में सबके सामने नीचा दिखाया जाए, ताकि उसकी छवि धूमिल हो जाए और सबसे बीच वह हंसी का पात्र बन जाए।

जन्मदिन पर जब भी कोई महाराज को उपहार देने आता, तो महाराज सिंहासन पर बैठकर ऊपर ग्रहण करते और उसे या तो महामंत्री को दे देते या सेनापति को, जो उनके अगला बगल बैठे होते। महामंत्री और सेनापति ने निश्चय किया कि सेनापति एक मेंढक अपने पैर के नीचे दबाकर बैठ जायेगा और जब तेनालीराम महाराज को उपहार देने आएगा, तो वह मेंढक के ऊपर से पैर हटा लेगा। मेंढक तेनालीराम के ऊपर कूदेगा और डर के मारे तेनालीराम का संतुलन बिगड़ेगा, जिससे वह भी नीचे गिर पड़ेगा और उसका उपहार भी। इस तरह वह महाराज की दृष्टि में गिर जायेगा और दरबार में भी सबके सामने उसकी किरकिरी होगी।

महाराज के जन्मदिन के दिन सेनापति अपने पैर के नीचे मेंढक दबाकर बैठा। दरबारी और अन्य व्यक्ति एक एक करके महाराज को उपहार देने आते। महाराज उपहार स्वीकार कर महामंत्री या सेनापति को सौंप देते, ताकि वे उसे उचित स्थान पर रख सकें। जब भी महाराज उपहार महामंत्री को सौंपते, वह आसन से खड़ा होकर उपहार लेता। लेकिन पैर के नीचे मेंढक होने के कारण सेनापति ने महाराज के सामने बहना बनाया कि उसके पैर में चोट लग गई है। इस बहाने के बाद उसे बार बार आसन से उठना नहीं पड़ता था।

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जब तेनालीराम उपहार देने आया, तो सेनापति ने मेंढक के ऊपर से पैर हटा दिया। मेंढक तेनाली राम के ऊपर उछला और तेनालीराम हड़बड़ा कर महाराज की गोद में गिर पड़ा। ये दृश्य देखकर महामंत्री और सेनापति बड़े खुश हुए कि अब महाराज तेनालीराम पर क्रोधित हो जायेंगे। 

तेनालीराम के स्वयं के ऊपर गिर जाने पर महाराज ने झल्लाकर पूछा, “तेनाली राम ये कैसी उद्दंडता है?”

तेनालीराम ने मेंढक मुट्ठी में पकड़ लिया था। वह समझ गया था कि ये महामंत्री और सेनापति की करस्तानी है। लेकिन उसने उनका नाम लिए बगैर कहा, “महाराज! आप मेरे करता धर्ता है। आपको मैं जन्मदिन पर क्या उपहार देता? जो भी देता, वह आपकी कृपा के सामने तुच्छ होता। इसलिए मैंने सोचा कि उपहार में मैं स्वयं को आपको सौंप दूं। मैं आजीवन आपका दास रहूंगा महाराज।”

तेनालीराम के इस उत्तर पर महाराज का क्रोध उड़ गया और वे प्रसन्न हो गए। अचानक उनकी दृष्टि तेनालीराम की बंद मुठ्ठी पर पड़ी।

उन्होंने पूछा, “तेनालीराम! तुमने मुठ्ठी में क्या पकड़ा हुआ है?”

तेनालीराम ने कहा, “महाराज! ये सेनापति का सेवक है। इस सेवक ने ही मुझे उपहार बनाकर आपके चरणों में प्रस्तुत किया है.” और तेनालीराम के अपनी मुठ्ठी खोल दी। मुट्ठी में बंद मेंढक सेनापति पर उछला और सेनापति घबराकर अपने आसन से गिर पड़ा। उसकी ये हालत देखकर पूरे दरबार में ठहाके लगने लगे। उसकी सबसे सामने बड़ी किरकिरी हुई। महाराज भी सारा माजरा समझ गए। उन्होंने सेनापति को दंड दिया और तेनालीराम को पुरुस्कार।

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