10 छोटी शिक्षाप्रद कहानियां | 10 Best Small Moral Stories In Hindi

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Small Moral Stories In Hindi

Small Moral Stories In Hindi 

ओक का पेड़ और सरकंडा की कहानी

नदी किनारे विशालकाय ओक का पेड़ लगा हुआ था। उसे देखकर लगता, मानो वह अपनी अनेकों भुजाओं को फैलाए गर्व से तनकर खड़ा हो। उसे अपनी विशालता का अभिमान भी था। पास ही कुछ पतले सरकंडे लगे हुए थे – नाजुक, कमज़ोर से दिखने वाले सरकंडे, जिन्हें देखकर ओक के पेड़ को अपनी मजबूती का अहसास होता और वह गर्व से और फूल जाता।

जब भी हवा चलती, विशाल ओक का पेड़ तनकर खड़ा होता, मानो हवाओं को रोक लेना चाहता हो। वहीं पतले सरकंडे झुक जाते, मानो हवा का अभिवादन कर उसे जाने का रास्ता दे रहे हों।

ओक का पेड़ सरकंडों को देखकर हंसता, “कितने कमज़ोर हो तुम लोग। ज़रा सी हवा के सामने झुक जाती हो। चिंता होती है मुझे तुम्हारी कि कहीं किसी दिन उखड़ कर उड़ न जाओ।”

“हमारी चिंता मत करो। हम हवाओं के सामने झुक जाते हैं। इसलिए सुरक्षित हैं। वे हमें नुकसान नहीं पहुंचाएंगी। लेकिन तुम ऐसे तने रहे, तो एक दिन ज़रूर उखड़ जाओगे। कई बार विरोध जताने के स्थान पर नम्रता दिखाना ज्यादा प्रभावी होता है।

“मैं तुम जैसा कमज़ोर नहीं, जो हवा के सामने झुक जाऊं।” ओक का पेड़ जवाब देता।

“तो बस इंतज़ार करो। तुम्हारा अंत निकट है।” सरकंडे कहते।

एक दिन भयंकर तूफानी हवा चलने लगी। हमेशा की तरह ओक का पेड़ तूफान से लड़ने तन कर खड़ा हो गया। सरकंडे नम्रता से झुक गए। हवाएं सरकंडों के ऊपर से सहजता से उड़ गई। लेकिन ओक के पेड़ का अड़ियल रवैया देख कर क्रोधित हो गई और अपना प्रचंड रूप दिखलाने लगी।

हवा के क्रोध के आगे ओक का पेड़ ठहर नहीं पाया और जड़ से उखड़ कर नीचे आ गिरा। उसे अपनी व्यर्थ की हठधर्मिता और अड़ियल रवैए का फल मिल चुका था।

सीख 

जहां नम्रता की आवश्यकता हो, वहां व्यर्थ की हठधर्मिता पतन लेकर आती है।

मक्खियों और शहद की कहानी

एक घर के किचन में शहद का जार रखा हुआ था, जिसमें मीठा शहद भरा हुआ था। एक दिन वह जार गिरकर टूट गया और उसमें भरा शहद फर्श पर फ़ैल गया।

मक्खियों ने जब इतना सारा शहद देखा, तो लालच में शहद पर जा बैठी और शहद खाने लगी। उन्हें मज़ा सा रहा था और वे बड़ी खुश थी। बड़े दिनों बाद उन्हें ऐसे मीठा शहद का स्वाद चखने को मिला था।

उन्होंने जी भर शहद खाया. कुछ देर में जब उनका पेट भर गया, तो वे उड़ने को हुई। लेकिन वे पूरी तरह से शहद में लथपथ हो चुकी थीं। उनके पैर और पंख तरल और चिपचिपे शहद में चिपक गए थे और अब उड़ पाना उनके लिए नामुमकिन हो चुका था।

मक्खियों ने उड़ने का बहुत प्रयास किया। लेकिन सारे प्रयास व्यर्थ रहे और वे सभी वहीं शहद में चिपककर मर गई।

सीख 

1. कभी-कभी थोड़े समय का सुख मुसीबत का कारण बन जाता है। कई बार तो प्राणों पर बन आती है। इसलिए ऐसे क्षणिक सुख के झांसे में न आयें और जीवन में सोच-समझकर ही आगे बढ़ें।

2. लालच से बचें।

वनवासी और सांप की कहानी

सर्दियों के दिन थे. ख़ूब बर्फ़बारी हुई थी. मौसम साफ़ होने पर एक वनवासी अपना काम खत्म कर जल्दी-जल्दी घर लौटने लगा. रास्ते में उसने देखा कि एक स्थान पर बर्फ़ पर कुछ काला-काला सा पड़ा हुआ है.

वह पास गया, तो पाया कि वह एक सांप है, जो लगभग मरणासन्न अवस्था में है. वनवासी को सांप पर दया आ गई. उसने उसे उठाया और उसे अपने थैले में डाल लिया, ताकि उसे कुछ गर्माहट मिल सके.

घर पहुँचकर उसने सांप को थैले से निकाला और उसे आग के पास रख दिया. वनवासी का बच्चा सांप के पास बैठ गया और उसे नज़दीक से देखने लगा. आग की गर्मी ने मानो सांप में नए जीवन का संचार कर दिया. उसमें हलचल होने लगी.

यह देख बच्चे ने सांप को दुलारने और सहलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया. लेकिन, सांप ने तुरंत फन फैला लिया और बच्चे को डसने के लिए तैयार हो गया. यह देख, वनवासी ने कुल्हाड़ी निकालकर सांप के दो टुकड़े कर दिए और बोला, “दुष्ट से कृतज्ञता की आशा नहीं करनी चाहिए.”

सीख 

दुष्ट से कृतज्ञता की आशा मूर्खता है.

कबूतर और मधुमक्खी की कहानी

एक जंगल में नदी किनारे पेड़ पर एक कबूतर रहता था। उस पेड़ के आसपास कई रंग बिरंगे फूल खिले हुए थे। एक दिन एक मधुमक्खी फूलों का रस इकट्ठा करने के लिए नदी किनारे आई और रस इकट्ठा करते करते अचानक नदी में गिर गई।

मधुमक्खी बाहर निकलने के लिए पंख फड़फड़ाने लगी। नदी गहरी थी। लाख कोशिशों के बावजूद मधुमक्खी बाहर नहीं निकल पाई। पास ही पेड़ पर बैठा कबूतर यह सारा दृश्य देख रहा था। उसे मधुमक्खी पर दया आई और उसने झट से पेड़ का एक पत्ता तोड़कर पानी में डाल दिया।

मधुमक्खी पत्ते पर चढ़ गई और पत्ते में बैठे-बैठे नदी के किनारे पर सुरक्षित पहुंच गई। उसने अपना जीवन बचाने के लिए कबूतर को धन्यवाद दिया और उसे वचन दिया कि जब भी अवसर आएगा, वह उसके उपकार का बदला अवश्य चुकाएगी।

कुछ दिन बीत गए। एक दिन कबूतर दाना खोजने जंगल में निकला। दिनभर दाना खोजने के बाद वह एक पेड़ पर सुस्ताने बैठा। वह इस बात से अनभिज्ञ था कि एक शिकारी उस पर तीर कमान से निशाना साध रहा है। 

उसी पेड़ पर मधुमक्खी का छत्ता था। मधुमक्खी की दृष्टि शिकारी पर पड़ गई और वह भांप गई कि शिकारी कबूतर का शिकार करने वाला है। बिना समय गंवाए उसने अपनी साथी मधुमक्खियों के साथ मिलकर शिकारी पर धावा कर दिया और उसे डंक मारने लगी। शिकारी तीर कमान छोड़कर भाग गया।

इस प्रकार मधुमक्खी ने कबूतर के उपकार का बदला चुकाया। कबूतर मधुमक्खी की मदद पर बहुत खुश था। उस दिन से कबूतर और मधुमक्खी बहुत अच्छे दोस्त बन गए। 

सीख

हमें हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहना चाहिए। जब हम दूसरों की मदद करेंगे, तभी वक्त आने पर हमें मदद प्राप्त होगी।

साही और सांप की कहानी

एक साही अपने रहने के लिए स्थान की खोज में भटक रहा था। दिन भर भटकने के बाद उसे एक गुफा दिखाई पड़ी। उसने सोचा – ‘ये गुफा रहने के लिए अच्छी जगह है।‘

वह गुफा के द्वार पर पहुँचा, तो देखा कि वहाँ सांपों का परिवार रहता है।

साही ने उन सबका अभिवादन किया और निवेदन करते हुए बोला, “भाइयों! मैं बेघर हूँ। कृपा करके मुझे इस गुफा में रहने के लिए थोड़ी सी जगह दे दो। मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।”

सांपों को साही पर दया आ गई और उन्होंने उसका निवेदन स्वीकार कर उसे गुफा के अंदर आने की अनुमति दे दी। लेकिन उसके गुफा में घुसने के बाद उन्होंने महसूस किया कि उसे अंदर बुलाकर और रहने कि जगह देकर उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी, क्योंकि साही के शरीर के कांटे उन्हें गड़ रहे थे और उनकी त्वचा ज़ख्मी हो रही थी।

उन्होंने साही से कहा, “तुम्हारे शरीर के कांटे हमें गड़ रहे हैं। इसलिए तुम यहाँ से जाओ और कोई दूसरी जगह खोजो।”

साही तब तक आराम से गुफा में पसर चुका था। बोला, “भई मुझे तो ये जगह बहुत पसंद है। मैं तो कहीं नहीं जाने वाला। जिसे समस्या है, वो जाये यहाँ से।”

अपनी त्वचा को साही के शरीर के कांटों से बचाने के लिए आखिरकार सांपों को वह गुफा छोड़कर जाना पड़ा। सांपों के जाने के बाद साही ने वहाँ पूरी तरह कब्जा जमा लिया।

सीख 

कई बार हम उंगली देते हैं और सामने वाला हाथ पकड़ लेता है। इसलिए किसी की मदद करने के पहले अच्छी तरह सोच-विचार कर लेना चाहिए।

भेड़िया और शेर की कहानी

जंगल किनारे स्थित चारागाह में भेड़िये की कई दिनों से नज़र थी। वहाँ चरती भेड़ों को देखकर उसके मुँह से लार टपकने लगती और वह अवसर पाकर उन्हें चुराने की फ़िराक़ में था।

एक दिन उसे यह अवसर मिल ही गया। वह चुपचाप चारागाह में चरते एक मेमने को उठा लाया। खुशी-खुशी वह जंगल की ओर भागा जा रहा था और मेमने के स्वादिष्ट मांस के स्वाद की कल्पना कर रहा था।

तभी एक शेर उसके रास्ते में आ गया। शेर भी भोजन की तलाश में निकला था। भेड़िये को मेमना लेकर आता देख उसने उसका रास्ता रोका और इसके मुँह में दबा मेमना छीनकर जाने लगा।

भेड़िया पीछे से चिल्लाया, “ये तो गलत बात है। ये मेरा मेमना था। इसे तुम इस तरह छीन कर नहीं ले जा सकते।”

भेड़िये की बात सुनकर शेर पलटा और बोला, “तुम्हारा मेमना! क्यों क्या चरवाहे ने इसे तुम्हें उपहार में दिया था? तुम खुद इसे चरागाह से चुराकर लाये हो, तो इस पर अधिकार कैसे जता सकते हो? फिर भी यदि यह चारागाह से चुराने के बाद यह तुम्हारा मेमना बन गया था, तो तुमसे छीन लेने के बाद अब ये मेरा मेमना बन गया है। मुझसे छीन सकते हो, तो छीन लो।”

भेड़िया जानता था कि शेर से पंगा लेना जान से हाथ गंवाना हैं। इसलिए वह अपना सा मुँह लेकर वहाँ से चला गया।

सीख 

गलत तरीके से प्राप्त की गई वस्तु उसी तरीके से हाथ से निकल जाती है।

शेर और जंगली सूअर की कहानी

एक जंगल में एक शेर रहता था. एक दिन उसे बहुत ज़ोरों की प्यास लगी. वह पानी पीने एक झरने के पास पहुँचा. उसी समय एक जंगली सूअर भी वहाँ पानी पीने आ गया.

शेर और जंगली सूअर दोनों स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझते थे. इसलिए पहले पानी पीकर एक-दूसरे पर अपनी श्रेष्ठता साबित करना चाहते थे. दोनों में ठन गई और लड़ाई शुरू हो गई.

उसी समय कुछ गिद्ध आसमान से उड़ते हुए गुजरे. शेर और जंगली सूअर की लड़ाई देख उन्होंने सोचा कि आज तो दावत पक्की है. इन दोनों की लड़ाई में कोई-न-कोई तो अवश्य मरेगा. फिर छककर उसका मांस खाएंगे. वे वहीं मंडराने लगे.

इधर शेर और जंगली सूअर के बीच लड़ाई जारी थी. दोनों पर्याप्त बलशाली थी. इसलिए पीछे हटने कतई तैयार नहीं थे. लड़ते-लड़ते अचानक शेर की दृष्टि आसमान में मंडराते गिद्धों पर पड़ी. वह फ़ौरन सारा माज़रा समझ गया.

लड़ना बंद कर वह जंगली सूअर से बोला, “ऊपर आसमान में देखो. गिद्ध मंडरा रहे हैं. वे हम दोनों में से किसी एक की मौत की प्रतीक्षा में है. लड़ते-लड़ते मरने और फिर गिद्धों की आहार बनने से अच्छा है कि हम आपस में मित्रता कर लें और शांति से पानी पीकर अपने घर लौटें.”

जंगली सूअर को शेर की बात जंच गई. दोनों मित्र बन गए और साथ में झरने का पानी पीकर अपने निवास पर लौट गए.

शिक्षा

आपसी शत्रुता में तीसरा लाभ उठाता है. इसलिए एक-दूसरे के साथ मित्रवत रहें.

मोर और नीलकंठ की कहानी

बरसात का मौसम था. मोर सुंदर पंख फैलाए नाच रहे थे. पेड़ पर बैठे एक नीलकंठ ने उन्हें नाचते हुए देखा, तो सोचने लगा कि काश, मेरे भी ऐसे सुंदर पंख होते, तब मैं इनसे भी ज्यादा सुंदर दिखाई पड़ता.

कुछ देर बाद वह मोरों के रहने के ठिकाने पर पहुँचा. वहाँ उसने देखा कि मोरों के ढेर सारे पंख जमीन पर बिखरे हुए हैं. उसने सोचा कि यदि मैं इस पंखों को अपनी पूंछ में बांध लूं, तो मैं भी मोर जैसा सुंदर दिखने लगूंगा.

बिना देर किये उसके उन पंखों को उठाया और अपनी पूंछ में बांध लिया. वह बहुत प्रसन्न था. उसे लगने लगा कि वह भी मोर बन गया है. वह ठुमकता हुआ मोरों के बीच गया और घूम-घूमकर उन्हें दिखाने लगा कि अब उसके पास भी मोर जैसे सुंदर पंख है और वह उनमें से ही एक है.

मोरों ने जब उसे देखा, तो पहचान लिया कि वो तो एक नीलकंठ है. फिर क्या सब उस पर टूट पड़े. वे उस पर चोंच मारकर मोर-पंखों को नोच-नोचकर निकालने लगे. कुछ ही देर में उन्होंने नीलकंठ की पूंछ में से सारे मोर-पंख नोंच दिए.

नीलकंठ के साथीगण दूर से यह सारा नज़ारा देख रहे थे. सारे पंख मोरों द्वारा नोंचकर निकाल दिए जाने के बाद दुखी मन से नीलकंठ अपने साथियों के पास गया. लेकिन वे सब उससे नाराज़ थे. वे बोले, “सुंदर पक्षी बनने के लिए मात्र सुंदर पंख ही आवश्यक नहीं है. हर पक्षी की अपनी सुंदरता होती है.”

सीख 

दूसरों की नक़ल न करें. स्वाभाविक रहें.

गंजा व्यक्ति और मक्खी की कहानी

गर्मी के दिन थे. दोपहर के समय एक गंजा व्यक्ति कहीं से पैदल चला आ रहा था. वह थक चुका था. इसलिए एक पेड़ के नीचे आराम करने बैठ गया.

वह पेड़ के नीचे बैठा सुस्ता रहा था कि कहीं से एक मक्खी उड़ती हुई आई और उसके गंजे सिर पर भिनभिनाने लगी. उसने उसे भगाया, तो वह उड़ गई. लेकिन कुछ देर बाद आकर फिर से भिनभिनाने लगी.

गंजा व्यक्ति परेशान होने लगा और यह देख मक्खी को मज़ा आने लगा. अब वह बार-बार उसके सिर पर भिनभिनाने लगी. मौका पाकर उसने उसे काट भी लिया.

मक्खी की इस हरक़त से गंजा व्यक्ति तंग आ गया और उसे मारने के लिए ज़ोर से पंजा मारा. मक्खी उड़ गई और वह पंजा उसे अपने ही सिर पर जा लगा.     

कुछ देर बाद मक्खी फिर से आ गई और काटने लगी. इस बार फिर से गंजे व्यक्ति ने उसे पंजा मारा, लेकिन वह फिर उड़ गई और उसे पंजे का वार अपने ही सिर पर पड़ा.

गंजा व्यक्ति समझ गया कि इस दुष्ट छोटी सी मक्खी पर वह जितना ध्यान देगा, वह उसे उतना ही परेशान करगी. इसलिए अगली बार जब वह आई, तो उसने उसे उड़ाने या भगाने का कोई प्रयास नहीं किया.  

जब मक्खी ने देखा कि गंजा व्यक्ति पर उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा, तो वह खुद ही उड़कर किसी और को सताने चली गई.

सीख

दुष्ट तुच्छ शत्रु पर ध्यान देकर आप खुद का नुकसान करते हैं.

चालाक लोमड़ी और मूर्ख बकरी की कहानी

एक दिन की बात है। एक लोमड़ी भोजन की तलाश में जंगल में घूम रही थी। घूमते घूमते वह एक कुएं के पास पहुंची, जिसके चारों ओर दीवार नहीं थी। यह देखने के लिए कि कुएं में कितना पानी है, वह कुएं में झांकने लगी और अपना संतुलन खो कर कुएं में गिर गई।

कुएं में बहुत अधिक पानी नहीं था। इसलिए लोमड़ी मरने से बच गई। लेकिन जब उसने कुएं से बाहर निकलने की बहुत कोशिश की, तो बाहर निकल नहीं पाई। वह वहीं खड़े रहकर किसी के आने का इंतजार करने लगी। कुछ देर बाद वहां एक बकरी वहां आई और कुएं की हलचल सुनकर कुएं में झांकने लगी। उसे वहां लोमड़ी खड़ी दिखाई दी।

बकरी ने चकित होकर लोमड़ी से पूछा, “लोमड़ी बहन, तुम कुएं में क्या कर रही हो?”

लोमड़ी को कुएं से बाहर निकलने का रास्ता सूझ गया था। वह मीठी वाणी में बोली, “बकरी बहन, क्या तुम नहीं जानती कि कुछ ही दिनों में जंगल में सूखा पड़ने वाला है। इसलिए मैं यहां आकर बैठ गई हूं। कम से कम मैं यहां प्यासी तो नहीं मरूंगी। तुम भी क्यों नहीं आ जाती?”

बकरी ने सोचा कि लोमड़ी सही कह रही है। पानी के लिए दर-दर भटकने से अच्छा है कि कुएं में ही जाकर बैठूं। पहले जाने का फायदा भी रहेगा। ज्यादा जानवर कुएं में चले गए, तो वे कहां मुझे कुएं का पानी पीने देंगे। 

यह विचार आते ही वह कुएं में कूद पड़ी। जैसे ही वह कुएं के अंदर पहुंची, मौके की ताक में बैठी लोमड़ी उसकी पीठ पर चढ़ गई और कुएं से बाहर निकलकर जंगल में भाग गई। मूर्ख बकरी कुएं में पड़ी रह गई।

सीख

कभी किसी की बात पर बिना सोचे समझे भरोसा नहीं करना चाहिए।

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