स्त्री भक्त राजा : पंचतंत्र की कहानी ~ लब्धप्रणाश | The King Who Loved His Wife Panchatantra Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम पंचतंत्र की कहानी “स्त्री भक्त राजा” (The King Who Loved His Wife Panchatantra Story In Hindi) शेयर कर रहे है. पंचतंत्र के तंत्र (भाग) लब्धप्रणाश से ली गई ये कहानी  एक ऐसे राजा और मंत्री की है, जो अपनी-अपनी पत्नियों से दबकर रहते थे. पढ़िए पूरी कहानी (Stree Bhakt Raja Panchatantra Ki Kahani) : 

The King Who Loved His Wife Panchatantra Story

The King Who Loved His Wife Panchatantra Story In Hindi
The King Who Loved His Wife Panchatantra Story In Hindi

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समुद्र किनारे स्थित एक राज्य में नंद नामक एक पराक्रमी और प्रतापी राजा राज करता था. उसके वीरता के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे. आस-पास के राज्य के समस्त राजा उसकी वीरता का गुणगान किया करते थे.

राजा का वररूचि नामक एक मंत्री था. वह शास्त्रों में पारंगत और अति विद्वान था. उसकी वाक्पटुता का सब लोहा मानते थे.

वररुचि की पत्नी स्वभाव की उग्र थी. वह बात-बात पर वररूचि से रूठ जाती थी और तब तक नहीं मानती थी, जब तक वररुचि उसे उसके कहे अनुसार नहीं मनाता था.

एक दिन वह पुनः वररुचि से रूठ गई. वररुचि ने उसे मनाने का बहुत प्रयत्न किया, किंतु वह नहीं मानी. अंततः वह बोला, “प्रिये! कब तक रूठी रहोगी. मान जाओ. तुम जैसा कहोगी, मैं वैसा ही करूंगा.”

पत्नी बोली, “मैं चाहती हूँ कि तुम सिर मुंडाकर मेरे पैरों में गिरकर क्षमा याचना करो. ऐसा करोगे, तभी मेरा तुम्हारे प्रति क्रोध समाप्त होगा.”

वररुचि ने पत्नी के कहे अनुसार ही किया और वह मान गई.

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उसी दिन राजा नंद की पत्नी भी उनसे रूठ गई. राजा ने भी उसे मनाने का बहुत प्रयत्न किया, किंतु उसकी अप्रसन्नता समाप्त नहीं हुई.

तब राजा नंद बोले, “प्रिये, क्यों अप्रसन्न होकर रुष्ठ हो? जानती नहीं कि तुम्हारी अप्रसन्नता देख मेरा ह्रदय व्याकुल हो जाता है. तुम्हारी प्रसन्नता के लिए मैं कुछ भी करूंगा. तुम आदेश दो.”

नंद की पत्नी बोली, “मैं चाहती हूँ कि मैं तुम्हारे मुख में लगाम डालकर तुझ पर सवारी करूं और तुम घोड़े की तरह हिनहिनाते हुए दौड़ लगाओ. ऐसा करोगे, तभी मैं प्रसन्न होऊंगी.”

राजा नंद ने पत्नी के कहे अनुसार ही किया और वह मान गई.

अगले दिन प्रातः जब वररुचि राजदरबार में आया, तो उसका सिर मुंडा हुआ था. राजा नंद को वररुचि के घर की स्थिति ज्ञात थी. वे समझ गए कि पत्नी को मनाने के प्रयास का यह परिणाम है.

वे उसका मखौल उड़ाते हुए बोले, “मंत्री, किस पुण्यकाल में तूने अपना सिर मुंडवाया है?”

वररूचि वाक्पटु तो था ही और राजा की स्थिति से भी भली-भांति अपरिचित थी. अविलंब उसने उत्तर दिया, “राजन, मैंने उस पुण्य-काल में सिर मुंडवाया है, जिस पुण्य-काल में पुरुष मुख में लगाम डालकर हिनहिनाते हुए दौड़ते हैं.”

यह सुनकर राजा नंद बहुत लज्जित हुए. उस दिन उन्होंने प्रण किया कि भविष्य में कभी वररुचि का मखौल उड़ाने का प्रयास नहीं करेंगे.

सीख  (Moral of the story) 

कभी किसी का मखौल नहीं उड़ाना चाहिए.


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