दो सिर वाला जुलाहा : पंचतंत्र की कहानी ~ अपरीक्षितकारक | The Two Headed Weaver Panchatantra Story In Hindi

फ्रेंड्स, इस पोस्ट में हम  पंचतंत्र की कहानी  दो सिर वाला जुलाहा (Two Headed Weaver Panchatantra Story In Hindi) शेयर कर रहे हैं. पंचतंत्र के तंत्र अपरीक्षितकारक की ये कहानी एक जुलाहे की है, जिसे वन देवता एक वरदान मांगने को कहते हैं. जुलाहा स्वयं की बुद्धि लगाये बगैर दूसरों के परामर्श पर वन देवता से दो अतिरिक्त सिर और पैर मांग लेता है. परिणाम क्या होता है? ये जानने के लिए दो सिर वाला बुनकर कहानी पढ़ें : 

Two Headed Weaver Story In Hindi 

Two Headed Weaver Panchtantra Story In Hindi
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एक गाँव में मंथरक नामक जुलाहा (weaver)अपनी पत्नि और बच्चों के साथ रहता था. कपड़े बुनकर वह अपने परिवार का भरण-पोषण किया करता था.

एक दिन उसका कपड़े बुनने का उपकरण टूट गया. उसकी मरम्मत के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी. जुलाहा कुल्हाड़ी लेकर लकड़ी की व्यवस्था करने गाँव के बाहर स्थित वन की ओर चल पड़ा.

वन पहुँचकर एक वृक्ष पर उसकी दृष्टि पड़ी और उसने सोचा कि इस वृक्ष की लकड़ी उसके उपकरण की मरम्मत के लिए अच्छी रहेगी. उसने वृक्ष काटने के लिए कुल्हाड़ी उठा ली. किंतु जैसे ही वह कुल्हाड़ी चलाने को हुआ, वृक्ष पर वास करने वाले एक देव ने उसे रोकते हुए कहा, “मैं वर्षों से इस वृक्ष पर सुख से निवास कर रहा हूँ. तुम इसे काटकर मेरा सुख नहीं छीन सकते. ऐसा कर तुम भी सुखी नहीं रह पाओगे.”

जुलाहा देव की बात सुनकर रुक गया, फिर बोला, “देव! मैं क्या करूं? मैं भी विवश हूँ. कपड़े बुनकर मैं अपने परिवार का भरण-पोषण करता हूँ. मुझे अपने बुनाई के उपकरण की मरम्मत के लिए लकड़ी की आवश्यकता है. यदि उसकी मरम्मत नहीं हुई, तो मेरे परिवारजन भूखे मर जायेंगे. इस वृक्ष को काटने के अतिरिक्त मेरे पास अन्य कोई विकल्प नहीं है. कृपा कर आप किसी अन्य वृक्ष पर आश्रय ले लीजिये.”

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जुलाहे ने फिर से कुल्हाड़ी उठा ली. देव ने उसे फिर से रोकते हुए कहा, “मैं तुम्हारी समस्या समझ रहा हूँ. किंतु मैं भी अपने वर्षों के निवास को छोड़कर नहीं जा सकता. तुम इसे मत काटो. तुम मुझसे जो चाहे वर मांग लो.”

वर की बात सुनकर जुलाहा सोच में पड़ गया. फिर बोला, “यदि ऐसा है, तो ठीक है. किंतु वर मांगने के लिए मुझे कुछ समय की आवश्यकता है. मैं अपनी पत्नि और मित्रों से परामर्श कर वर मागूंगा.”

देव ने उसे समय दे दिया. जुलाहा गाँव की ओर जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाने लगा. घर जाने के पूर्व वह अपन मित्र नाई के पास गया और उसे पूरी बात बताते हुए पूछा, “मित्र! अब तुम्हीं बताओ. मुझे क्या वरदान मांगना चाहिए.”

नाई ने थोड़ी देर विचार कर उत्तर दिया, “मित्र! तुम देव से एक राज्य मांग लो. मुझे अपना मंत्री बना लेना. हम दोनों आपसी मंत्रणा से अच्छे से राज-पाट संभालेंगे.”

नाई का परामर्श सुनकर जुलाहा बोला, “घर जाकर मैं जरा अपनी पत्नि से भी परामर्श कर लूं. देखता हूँ कि वो क्या कहती है?”

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“मित्र! स्त्री से ऐसे गंभीर विषय पर मंत्रणा मत करो. वो मात्र अपना स्वार्थ देखती हैं. अपने सुख-साधन के अतिरिक्त वो तुम्हें कुछ और मांगने का परामर्श नहीं देगी.” नाई ने जुलाहे को चेताया.

जुलाहे ने फिर भी पत्नि के परामर्श के बाद ही वर मांगने की बात दोहराई और घर चला आया. घर आकर उसने पत्नि को पूरा वृतांत बताया और साथ ही नाई द्वारा दिया गया परामर्श भी बता दिया.”

पत्नि बोली, “राज्य मांग कर तुम क्या करोगे? राज्य के कार्य का संचालन दुष्कर कार्य है. तुम्हें न स्वयं के लिए समय मिलेगा, न परिवार के लिए.”

जुलाहे को पत्नि की बात ठीक लगी. वह बोला, “तुम ठीक कहती हो. राज-पाट संभालना मेरे बस की बात नहीं है. उससे सुख-प्राप्ति नहीं होगी. अब तुम ही बताओ मैं देव से क्या मांगू.”

पत्नि बोली, “तुम अपने दो हाथों से जितने वस्त्र बुनते हो, उससे हमारा गुजारा अच्छे से चल जाता है. सोचो, यदि तुम्हारे चार हाथ हों, तो तुम दुगुने वस्त्र बुन पाओगे. इससे कमाई तो बढ़ेगी ही, समाज में हमारा मान भी बढ़ जायेगा.”

जुलाहे को पत्नि का परामर्श जंच गया. वह वन जाकर देव से बोला, “देव! मुझे वर चाहिए कि मैं दो सिर और चार हाथों वाला हो जाऊं.”

देव ने उसे उसका मनचाहा वरदान दे दिया. अगले ही क्षण जुलाहे के दो सिर और चार हाथ हो गए. वह आनंद पूर्वक अपने गाँव लौटा. लेकिन गाँव वालों ने जब उसे देखा, तो उसे राक्षस समझ बैठे और पीट-पीटकर उसे मार डाला.

सीख (Moral of the story two headed weaver)

बिना सोचे-समझे दूसरों के परामर्श पर चलने वाले का यही हश्र होता है.


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