चुरकी मुरकी की कहानी | Churaki Muraki Ki Kahani 

चुरकी मुरकी की कहानी, Churaki Muraki Ki Kahani, Churaki Muraki Story In Hindi इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। यह Chhattisgadhi Kahani दो बहनों की है। एक दयालु गरीब बहन और एक घमंडी अमीर बहन। पढ़िए पूरी कहानी :

Churaki Muraki Ki Kahani 

Churaki Muraki Ki Kahani 

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एक गांव में दो बहनें रहा करती थी – चुरकी और मुरकी की। चुरकी सांवली रंग की साधारण रूप रंग की लड़की थी, वहीं मुरकी गौर वर्ण की बहुत सुंदर लड़की थी। साधारण रूप रंग के कारण चुरकी का विवाह एक गरीब परिवार में हुआ, वहीं मुरकी की सुंदरता पर रीझकर एक अमीर व्यक्ति ने उससे विवाह किया।

अपनी सुंदरता का घमंड तो मुरकी की पहले ही से था, विवाह के बाद उसे दौलत का भी घमंड हो गया। दोनों बहनें आसपास ही रहा करती थीं। जब भी मौका मिलता मुरकी चुरकी को उसकी गरीबी के कारण नीचा दिखाने की कोशिश करती। चुरकी को बुरा तो लगता, किंतु वह मन मसोसकर रह जाती।

चुरकी के दिन बड़ी तंगहाली में गुजर रहे थे। दो वक्त की रोटी भी बड़ी मुश्किल से जुट पाती थी। कई बार उसने मुरकी से मदद की गुहार की, किंतु मुरकी ने कभी उसकी कोई मदद नहीं की। 

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एक दिन चुरकी ने सोचा कि दूसरे गांव में रहने वाले अपने भाई से मदद मांग लूं। वह कभी इंकार नहीं करेगा और वह अपने बच्चों को घर पर पति के पास छोड़ दूसरे गांव के लिए निकल पड़ी।

रास्ते में उसे एक गौशाला दिखाई पड़ी, जिसके द्वार पर एक गाय खड़ी थी। चुरकी को देखकर गाय बोली, “बेटी! ज़रा मेरी गौशाला साफ कर दे। बैठने की भी जगह नहीं है।”

चुरकी ने देखा कि पूरी गौशाला गोबर से भरी हुई है। उसने गौशाला साफ कर दी। गाय ने उसका धन्यवाद किया और वापस आते समय मिलकर जाने की बात कही। चुरकी आगे बढ़ गई।

कुछ दूर जाने के बाद उसे बेर का पेड़ दिखाई पड़ा। वह पेड़ के पास से गुजरी, तो बेर के पेड़ ने कहा, “बहन! नीचे बहुत सारे कांटे बिखरे हुए हैं। ज़रा साफ कर दो।”

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चुरकी ने बिना देर के बेर के पेड़ के नीचे से सारे कांटे साफ कर दिए। बेर के पेड़ ने उसका धन्यवाद किया और वापस आते समय मिलकर जाने की बात कही। चुरकी आगे बढ़ गई।

आगे बढ़ने पर उसे एक बूढ़ी अम्मा दिखाई पड़ी, जो सिर पर भारी टोकरी लिए जा रही थी। चुरकी ने उससे पूछा, “कहां जा रही हो अम्मा?”

“गांव तक जा रही हूं बेटी।” बूढ़ी अम्मा ने जवाब दिया।

“मैं भी गांव जा रही हूं। लाओ अपनी टोकरी मुझे दे दो।” चुरकी ने कहा और बूढ़ी अम्मा के सिर से टोकरी ले ली। दोनों साथ साथ गांव पहुंचीं। चुरकी ने बूढ़ी अम्मा के घर तक टोकरी छोड़ी और अपने भाई के घर पहुंच गई। मगर उस समय भाई घर पर नहीं था। वह अपनी भाभी से मिली और उसे अपने घर के हालात बताकर मदद की गुहार लगाई। भाभी ने उसे घर से भगा दिया। 

दुखी होकर वह अपने गांव वापस लौटने लगी। रास्ते में उसी बूढ़ी अम्मा का घर पड़ा। बूढ़ी अम्मा ने उसे अपने घर बुलाया और कुछ खाने को दिया। फिर अपनी टोकरी देकर विदा कर दिया। रास्ते में चुरकी ने टोकरी पर ढका कपड़ा हटाया, तो हैरान रह गई। टोकरी सोने चांदी से भरी थी।

वह चलते चलते बेर के पेड़ के पास पहुंची। बेर के पेड़ ने उसे रोका और कहा, “मेरे तने की खोह में तुम्हारे लिए उपहार है।” 

चुरकी ने खोह में हाथ डाला। वहां उसे हीरे जवाहरात की पोटली मिली। वह बेर के पेड़ का धन्यवाद कर आगे बढ़ गई। चलते चलते वह गौशाला के पास पहुंची। वहां गाय उसका इंतज़ार कर रही थी। उसने अपने गले में बंधी सोने की घंटी उसे दे दी।

चुरकी जब घर पहुंची, तो सारी चीज़ें अपने पति और बच्चों को दिखाई। वे सभी बहुत खुश हुए। उनके दिन फिर गए। वे गांव के अमीर लोगों में शुमार हो गए। ये देखकर मुरकी जल कुढ़ गई। एक दिन उसने चुरकी के बच्चों को अपने घर बुलाया और उनसे पूछा कि वे उतने अमीर कैसे बन गए। बच्चों को कुछ पता नहीं था। वे बोले, “मां! मामा घर से उपहार लाई।”

मुरकी ने सोचा कि जरूर उसके भाई ने चुरकी को उपहार में ढेर सारा रुपया पैसा दिया होगा। उसने भी अपने भाई के घर जाने का फैसला कर लिया। अगले दिन वह भाई के गांव के लिए निकल पड़ी।

रास्ते में उसे गौशाला के सामने खड़ी गाय दिखी। गाय ने उससे गौशाला साफ करने का निवेदन किया, जिसे ठुकरा कर मुरकी आगे बढ़ गई। आगे उसे बेर का पेड़ दिखा, जिसने उससे कांटे साफ करने का निवेदन किया। किंतु मुरकी मुंह बनाकर आगे बढ़ गई।

गांव के बाहर उसे वही बूढ़ी अम्मा दिखाई पड़ी, जो टोकरी सिर पर रखकर घर जा रही थी। उसने मुरकी से टोकरी घर तक पहुंचाने को कहा, तो मुरकी यह कहकर आगे बढ़ गई कि वह उसकी नौकर नहीं है।

वह आखिरकार अपने भाई के घर पहुंची। भाई घर पर ही था। उसने उसका खूब सत्कार किया। मगर बिना कुछ दिए ही उसे वापस भेज दिया। दुखी मन से वह वापस लौटने लगी। रास्ते में उसे प्यास लगी। वह पानी मांगने एक घर में गई। वह उसी बूढ़ी अम्मा का घर था। उसने उसे पानी दिया। पानी पीते ही मुरकी का मुंह कड़वा हो गया। वह वहां से निकल गई। 

रास्ते में उसे बेर का पेड़ दिखा, तो उसने सोचा कि बेर खाकर अपने मुंह का स्वाद ठीक कर लूं। वह बेर तोड़ने के लिए आगे बढ़ी, तो उसके पैर में कांटे चुभ गए। उसके पैर लहू लुहान हो गए। किसी प्रकार चलते हुए वह गाय के गौशाला तक पहुंची। वह दर्द के मारे कराह रही थी। वह वहीं टीले पर बैठने को हुई, तो गाय ने उसे सींग मारकर गिरा दिया। उसकी कमर टूट गई। किसी प्रकार वह घर पहुंची और महीनों बिस्तर पर पड़ी रही। उसे अपने बुरे व्यवहार, घमंड और लालच का फल मिल गया था।

सीख (Churaki Muraki Story Moral)

1. कभी घमंड नहीं करना चाहिए।

2. हमेशा दूसरों की सहायता करनी चाहिए।

3. कभी लालच नहीं करना चाहिए।

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