एक थी सरुमा असमिया लोक कथा | Ek Thi Saruma Assam Ki Lok Katha

एक थी सरुमा असमिया लोक कथा, Ek Thi Saruma Assam Ki Lok Katha, Ek Thi Saruma Assam Folk Tale Story In Hindi

Ek Thi Saruma Assam Ki Lok Katha

Ek Thi Saruma Assam Ki Lok Katha

एक थी सरूमा असम की लोक कथा (Ek Thi Saruma Assam Ki Lok Katha Kahani) है। यह सरुमा नाम की लड़की की भोली भाली कहानी है, जो अपनी सौतेली मां के अत्याचारों से तंग है। 

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असम के ग्वालपाड़ा जिले के एक गांव में लक्ष्मीनंदन नामक साहूकार अपनी पत्नी और बेटी के साथ रहता था। बेटी का नाम सरुमा था। तीनों का जीवन सुख से बीत रहा था कि एक दिन सरूमा की मां बीमार पड़ गई और चल बसी।

बेटी छोटी थी। वह अपनी मां के बगैर दुख से तड़पने लगी। अपनी बेटी का दुख देख लक्ष्मीनंदन भी दुखी हो जाता। एक दिन उसके चाचा ने समझाया कि सरुमा की खातिर उसे दूसरा विवाह कर लेना चाहिए। लक्ष्मी नंदन ने सोचा कि सरूमा को मां मिल जायेगी और एक औरत के आ जाने से घर भी संवर जाएगा। कुछ दिनों बाद उसने दूसरा विवाह कर लिया।

सरूमा की सौतेली मां घर आ गई। सरूमा नई मां को पाकर खुश थी, लेकिन उसकी सौतेली मां को वह फूटी आंख नहीं सुहाती थी। 

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एक दिन लक्ष्मी नंदन को किसी काम से कुछ महीनों के लिए बाहर जाना पड़ा। घर पर सरूमा अपनी सौतेली मां के साथ रह गई। लक्ष्मी नंदन के जाते ही सरूमा की मां ने अपना असली रंग दिखाना शुरू किया। वह उससे घर के सारे काम करवाती, मगर भर पेट भोजन नहीं देती। 

एक दिन उसने सरूमा को नदी से मछलियां लाने को कहा। सरूमा टोकरी लेकर मछली पकड़ने चली गई।

नदी पर पहुंचकर उसने बहुत कोशिश की, लेकिन वह मछलियां नहीं पकड़ पाई। घर जाकर वह क्या जवाब देगी, ये सोचकर वह रोने लगी। उसका रोना सुनकर नदी से एक सुनहरी मछली बाहर आई और बोली, “सरूमा बेटी! मैं तेरी मां हूं। मुझे बता कि तू क्यों रो रही है।”

सरुमा ने उसे सारी बात बताई। तब उसकी मां ने उसकी टोकरी मछलियों से भर दी। साथ ही उसे खाने के लिए स्वादिष्ट भोजन भी दिया। सरूमा मछलियां लेकर घर पहुंची। सौतेली मां ने भरी हुई टोकरी देखकर पूछा, “इतनी सारी मछलियां कैसे पकड़ी तूने?”

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भोली सरूमा ने सारी बात बता दी। ये सुनकर सौतेली मां को गुस्सा आ गया। उसने सरुमा का नदी पर जाना बंद करवा दिया। उसने सरूमा को भोजन देना भी बंद कर दिया, जिससे वह दिन पर दिन दुबली होने लगी।

एक दिन सौतेली मां ने सरुमा को चिलचिलारी धूप में बाड़ी में पानी देने को कहा। भूखी प्यासी सरुमा बाड़ी में पानी देने लगी। लेकिन कुछ ही देर में वह थक कर चूर हो गई और एक पेड़ के नीचे बैठ कर रोने लगी।

तभी वहां तोते के रूप में उसकी असली मां आई। उसने सरुमा को मीठे फल दिए और कहा कि वह रोज बाड़ी में आया करे। सरुमा रोज़ बाड़ी में जाती और तोते के रूप में उसकी मां आकर उसे ढेर सारे फल खिलाती। जब उसकी सौतेली मां को यह बात पता चली, तो उसने सरुमा का बाड़ी में जाना बंद करवा दिया।

उस दिन के बाद से सरूमा की मां गाय के रुप में आने लगी और अपना दूध उसे पिलाने लगी। सौतेली मां ने देखा कि सरूमा अब भी दिन पर दिन मोटी होती जा रही है। उसे पता चला कि एक गाय उसे रोज दूध पिला जाती है। 

एक दिन जब गाय आई, तो सौतेली मां ने उसे मारने की कोशिश की। लेकिन गाय उसे सींग मारकर भाग गई। सौतेली मां बहुत नाराज हुई। उसने सरूमा पर गुस्सा निकाला।

अब सरूमा बाड़ी से टमाटर तोड़कर खाने लगी। तब सौतेली मां ने टमाटर के सारे पौधे उखाड़ कर फेंके और सरूमा को एक अंधेरे कमरे में बंद कर दिया। अब सरूमा को पानी भी नसीब नहीं था। वह कमरे में बैठकर दिन रात रोती थी।

एक दिन चूहे के रूप में उसकी असली मां आई और उसे भुना अनाज लाकर दिया। सरूमा ने भुना अनाज खाया और मां द्वारा लाया पानी पिया। 

जब सौतेली मां ने देखा कि अंधेरे कमरे में भी सरुमा मोटी होती जा रही है, तो उसने उसे मार डालने की योजना बनाई। लक्ष्मी नंदन कुछ ही दिनों में वापस आने वाला था। सौतेली मां ने एक दिन तलवार से सरुमा को मारने की कोशिश की। लेकिन चूहे के रूप में आई असली मां ने उसे पहले ही ऐसे वस्त्र दे दिए थे, जिस पर तलवार का कोई असर नहीं होता था, सरूमा बच गई। 

अगले दिन लक्ष्मी नंदन घर लौटा। उस समय सौतेली मां बाजार गई हुई थी। वह सरूमा को पुकारने लगा। मगर सरूमा अंधेरे कमरे में बंद थी। उस अंधेरे कमरे से आवाज आई, “तुम अपनी बेटी को जीवित देखना चाहते हो, तो उसकी सौतेली मां को घर से निकल दो।”

लक्ष्मी नंदन ने कमरा खोला, तो उसे रोती हुई सरुमा दिखी। पूछने पर सरूमा ने सारी बात बताई। ये सुनकर लक्ष्मी नंदन बहुत क्रोधित हुआ। सौतेली मां जब बाजार से लौटी, तो लक्ष्मी नंदन ने उसे घर से निकाल दिया। 

उस दिन के बाद से लक्ष्मी नंदन और सरुमा सुख से रहने लगे। 

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