साधु और राजा की कहानी | Sadhu Aur Raja Ki Kahani 

साधु और राजा की कहानी, Sadhu Aur Raja Ki Kahani, Monk And King Story In Hindi, Sadhu Aur Raja Story In Hindi इस पोस्ट में शेयर की जा रही है। ये नैतिक कथा जीवन में अच्छे कर्म करने की सीख देती है। पढ़िए : 

Sadhu Aur Raja Ki Kahani 

Sadhu Aur Raja Ki Kahani 

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बहुत समय पहले की बात है। एक राज्य में एक दयालु राजा राज्य करता था। वह प्रजा का हितैषी था। प्रजा का हित उसके लिए सर्वोपरि था। वह हमेशा इस प्रयास में रहता कि उसकी प्रजा को कोई समस्या कोई परेशानी न हो। सभी सुख चैन का जीवन बसर करें। उसके शासन में प्रजा प्रसन्नता और सुख से जीवन व्यतीत कर रही थी।

राजा प्रायः वेष बदलकर राज्य भ्रमण पर निकलता और प्रजा की स्थिति के बारे में पता करता। यदि उसे पता चलता कि प्रजा किसी प्रकार के कष्ट में है, तो वह उन कष्टों को दूर करने का प्रयास करता। 

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एक बार वह इसी प्रकार वेष बदलकर राज्य भ्रमण पर निकला। भ्रमण करते करते वह एक जंगल से गुजरा और रास्ता भटक गया। उसके सैनिक पीछे छूट गए और वह अकेला रह गया। रास्ता ढूंढता हुआ वह एक स्थान पर पहुंचा। उसने देखा कि वहां एक कुटिया बनी हुई है। राजा को भूख लग आई थी। उसने सोचा, यहां अवश्य भोजन की व्यवस्था हो जायेगी। उसने अपने घोड़े को एक पेड़ से बांधा और कुटिया में प्रवेश किया।

वह एक साधु की कुटिया थी। गेरूए वस्त्र धारण किए एक साधु पेड़ के नीचे आसन लगाकर बैठे थे। उनकी आंखें बंद थी और वे ध्यान में लीन थे। राजा ने देखा कि उस स्थान का वातावरण बहुत ही सुंदर है। पेड़ पौधे हरे भरे हैं, जिनमें फूल और फल लदे हुए हैं। पंछी उन्मुक्त होकर विचरण कर रहे हैं। राजा ये देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। वह साधु के पास गया और उन्हें प्रणाम कर उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया। साधु ने आहट पाकर आंखें खोली और अपने सामने एक नौजवान को पाया। उसके मुख का तेज देखकर ही साधु समझ गए कि वह कोई राजसी व्यक्ति है।

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राजा ने उन्हें बताया कि वह रास्ता भटक गया है। साधु ने उसे अपने आश्रम में शरण दी। खाने के लिए मीठे फल दिए। राजा ने कभी उतने मीठे फल नहीं खाए थे। उसके चकित होकर पूछा, “गुरुवर! आज तक मैंने इतने मीठे और स्वादिष्ट फल नहीं खाए। इनके इतने मीठे होने का कारण क्या है?”

साधु ने कहा, “इस राज्य का राजा अत्यंत दयालु और न्यायप्रिय है। इसलिए ये फल इतने मीठे हैं। जब तक वह अपनी प्रजा का हितैषी रहेगा, दिन दुखियों का सहायक रहेगा, ये फल ऐसे ही मीठे रहेंगे।”

राजा को ये सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसके लिए इन बातों पर विश्वास करना कठिन था। जब साधु से आज्ञा लेकर वह लौटा, तो उसने निश्चय किया कि वह इस बात का परीक्षण अवश्य करेगा। उसे अपने सैनिक मिल गए, जो जंगल में उसे ढूंढ रहे थे। वह अपने राज्य वापस लौट गया।

वापस लौटने के बाद उसमें प्रजा पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए। उसने किसानों का लगान बढ़ा दिया और प्रजा पर ना ना प्रकार के कर लगा दिए। अब वह अपना धन भोग विलास में खर्च करने लगा और प्रजा की ओर से उदासीन हो गया। प्रजा पर अत्याचार बढ़ने लगे, तो पूरे राज्य में त्राहि त्राहि मच गई।

कुछ दिनों बाद राजा फिर जंगल में उसी साधु की कुटिया में पहुंचा। इस बार उसने देखा कि वहां का वातावरण भिन्न हैं। पेड़ पौधे सूख चुके हैं, फूल मुरझा गए हैं, फल सड़ चुके हैं। ये देखकर वह चकित रह गया। वह साधु के पास गया और उसे प्रणाम किया। साधु ने उसे खाने के लिए फल दिए। इस बार फलों का स्वाद कड़वा था। राजा ने साधु से इसका कारण पूछा।

साधु ने कहा, “इस राज्य का राजा बाद पहले जैसा नहीं रहा। उसे प्रजा के हित का कोई खयाल नहीं है। वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा है। उसके प्रति प्रजा के मन में कड़वाहट बस गई है। इसलिए इन फलों का स्वाद कड़वा है।”

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राजा साधु की कुटिया से अपने राज्य लौट आया। उसे साधु की बात समझ आ गई थी। अगले दिन से वह फिर से अपनी प्रजा का ध्यान रखने लगा। उसके बदलते ही फिर से प्रकृति ने अपना रंग बदला और हरी भरी हो गई। 

सीख (Sadhu Aur Raja Ki Kahani Seekh)

जैसा कर्म करोगे, वैसा ही फल मिलेगा। यदि अच्छे कर्म करोगे, तो अच्छा फल मिलेगा। बुरे कर्म करोगे, तो बुरा। यदि हम किसी को कड़वाहट देंगे, तो बदले में हमारे जीवन में भी कड़वाहट घुल जायेगी। इसलिए हमेशा सबका भला करें।

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