छत्तीसगढ़ की दो लोक कथाएं | Chhattisgarh Ki Do Lok Kathayen

छत्तीसगढ़ की दो लोक कथाएं, Chhattisgarh Ki Do Lok Kathayen, Two Folk Tales Of Chhattisgarh In Hindi 

Chhattisgarh Ki Do Lok Kathayen

Chhattisgarh Ki Do Lok Kathayen

महुआ का पेड़ छत्तीसगढ़ की लोक कथा 

एक गाँव का मुखिया अतिथि सत्कार के लिए प्रसिद्ध था. आये दिन उसके घर कोई न कोई अतिथि पधारा रहता और वो उनकी आव-भगत में कोई कसर नहीं छोड़ता था. वह उनके उनके खाने-पीने की बेहतरीन व्यवस्था करता, उन्हें जी-भर कर खिलाता-पिलाता. उसकी इच्छा रहती कि उसके घर से हर अतिथि ख़ुशी से झूमता हुआ जाए. एक हद तक ऐसा होता भी. हर अतिथि उसके अतिथि-सत्कार की प्रशंषा करता हुआ बड़ा ख़ुश होकर उसके घर से जाता. तिस पर भी मुखिया संतुष्ट नहीं होता, क्योंकि अतिथि ख़ुशी-ख़ुशी उसकी प्रशंषा तो कर रहे होते थे, मगर ख़ुशी से झूम नहीं रहे होते थे.

अतिथियों के लिए कंदमूल और फल इकट्ठे करने के लिए मुखिया और उसका बेटा जंगल में भटकते और भोजन के समय उन्हें परोसकर अतिथियों का सत्कार करते थे.

एक बार कुछ अतिथि मुखिया के घर पधारे थे. मुखिया ने उन्हें भोजन के उपरांत फल खाने को दिया. अतिथि बड़े चाव से फल खाने लगे. एक अतिथि उसने बोला, “हमारे उधर के जंगल में कई प्रकार के फल मिलते हैं. लेकिन लगता है यहाँ के जंगल में बस ये ही फल मिलता है.”

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मुखिया ने उत्तर दिया, “हम जंगल में कई फलों को खोजने का प्रयास करते हैं, लेकिन यहाँ बस यही फल मिल पाता है.”

दूसरा अतिथि बोला, “पर मुझे तो यही फल बहुत स्वादिष्ट लगता है. इतना मीठा और रसीला कोई फल नहीं. ऊपर से आपका सत्कार, मन प्रसन्न हो उठता है.”

मुखिया उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया. अतिथियों के जाने के बाद वह अपने बेटे से बोला, “हमें अपने अतिथियों के लिए किस्म-किस्म के फलों की व्यवस्था करनी होगी. एक ही फल खाते-खाते वे ऊब जाते हैं.”

“पिताजी मैं कल ही जंगल के भीतर तक जाऊंगा और नए फल खोजने का प्रयास करूंगा.”

 मुखिया बोला, “हाँ बेटा, अवश्य जाना.”

अगले दिन भोर होते ही मुखिया का बेटा जंगल के लिए निकल गया. वह घने जंगल में घूमता रहा, किंतु दिन भर घूमने के बाद भी उसे कोई नए किस्म का फल दिखाई नहीं पड़ा. वह थककर चूर हो चुका था, इसलिए सुस्ताने के लिए एक पेड़ के नीचे बैठ गया.

वहाँ बैठे-बैठे उसे कुछ ही समय गुजरा था कि एक नन्हीं सी चिड़िया उसके सिर पर आकर बैठ गई. कुछ देर वहाँ बैठने के बाद वह फुदककर एक पेड़ की डाल पर बैठ गई. वह मस्ती में झूमती सी दिखाई पड़ रही थी.

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उसने वहाँ की सभी चिड़ियाओं पर ध्यान दिया. सभी बड़ी मस्त दिखाई पड़ रही थी. वह इसका कारण सोचने लाग. तभी उसे देखा कि एक चिड़िया पास ही एक पेड़ के नीचे बने गड्ढे का पानी पीने गई और पानी पीकर झूमने लगी. उसके बाद जितनी भी चिड़ियाओं ने उस गड्ढे का पानी पिया, वे झूमने लगी.

मुखिया का बेटा समझ गया कि इस गड्ढे के पानी में अवश्य कुछ है, जो चिड़ियाओं को झूमने पर विवश कर रहा है. वह गड्ढे के पास गया और उसका पानी पी लिया. पानी पीकर वह भी झूमने लगा. वह वहीं बैठे-बैठे सोचने लगा कि इस गड्ढे के पानी में ऐसा क्या है कि इसे पीने के बाद झूमने का मन करता है.

उसने ध्यान से देखा, तो पाया कि वह गड्ढा महुए के पेड़ के नीचे है और उसमें महुए के फल गिर रहे हैं. वह समझ गया कि महुए के फल में कुछ है, जो व्यक्ति को झूमने पर विवश कर देता है. इसी की तो उसे तलाश थी. उसने बिना देर किये ढेर सारे महुए के फल तोड़े और घर चला आया.

उस दिन उसके घर तीन अतिथि आये हुए थे. मुखिया अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहा था. उसकी पत्नी अतिथियों को खाना परोस रही थी, किंतु चिंतित थी. एक तो बेटा घर नहीं लौटा था और दूसरा, अतिथियों को खिलाने के लिए घर पर फल नहीं थे.

कुछ देर बाद बेटा घर लौट आया. उसे देखकर मुखिया और उसकी पत्नी ख़ुश हो गए. तब तक अतिथि भोजन कर चुके थे. वे जाने की तैयारी करने लगे. तब बेटे ने उन्हें कुछ देर रुकने को कहा. फिर अंदर जाकर अपनी माँ को महुए के फल दिखाते हुए सारी बात बताई. माँ समझ गई कि उन फलों को कुछ दिन पानी में रखना होगा.

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बेटे को उसने यह बात बताई, तो उसे भी यह बात ठीक लगी. उसने अतिथियों को विदा कर तीन दिन बाद फिर से आने का न्यौता दिया. उसकी माँ ने महुए के फल पानी में डालकर रख दिए.

तीन दिन बाद जब अतिथि आये, तो उन्होंने भोजन के साथ महुए का पानी पीने को दिया गया. अतिथियों ने वह पानी पिया, तो ख़ुशी से झूमने लगे और झूमते-झूमते अपने घर लौटे. मुखिया, उसकी पत्नी और बेटा बहुत ख़ुश हुए.  

बकरी और बाघिन छत्तीसगढ़ की लोक कथा

एक गाँव में बूढ़े दंपत्ति रहा करते थे. संतान न होने के कारण वे दोनों बहुत दुखी थी. वक़्त गुजरता गया और उन्हें अकेलापन काटने लगा. एक दिन बूढ़े आदमी ने बूढ़ी दाई से कहा, “कब तक हम अकेले रहेंगे? अब मन नहीं लगता. घर काटने को दौड़ता है. क्यों न हम एक बकरी ले आयें?”

“ये तो बहुत अच्छी बात कही तुमने.” बूढ़ी दाई ख़ुश होकर बोली.

उसी दिन बूढ़ा बाज़ार गया और चार कौड़ी देकर एक बकरी ख़रीद लाया. चार कौड़ी में खरीदने के कारण उन्होंने उस बकरी का नाम “चारकौड़ी” रख दिया.

वे दोनों बकरी के घर आने से बहुत ख़ुश थे. उनका अधिकांश समय उसे खिलाने-पिलाने में बीतने लगा. वे कहीं भी जाते, चारकौड़ी उनके साथ जाती. वह उनके परिवार का हिस्सा बन गई थी.

लेकिन अधिक लाड़-प्यार का नतीज़ा ये हुआ कि चारकौड़ी मनमानी करने लगी. वह आस-पड़ोस के किसी भी घर में घुस जाती, उनकी बाड़ी की सब्जियाँ खा जाती, जिससे सारे पड़ोसी परेशान होने लगे. अब आये दिन पड़ोसियों की शिकायतें घर आने लगी. बूढ़ा आदमी और बूढ़ी दाई चारकौड़ी की शिकायतें सुन-सुनकर तंग आ गए.

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एक दिन बूढ़े आदमी ने बूढ़ी दाई से कहा, “इसकी मनमानी बढ़ती जा रही है. इसे जंगल में छोड़ आता हूँ.”

बूढ़ी दाई को यह बात जंची नहीं, वह बोली, “इस बेचारी को जंगल में क्या छोड़ना. दिन भर घर में रहती है, इसलिए मनमौजी हो गई है. इसे अब राउत के साथ चरने भेज दिया करेंगे. दिन भर जंगल में रहेगी, शाम को घर आ जायेगी. घर पर कम रहेगी, तो किसी को परेशान भी नहीं करेगी.”

बूढ़ा मान गया और उसी दिन राउत से जाकर चारकौड़ी को चराने की बात कर ली. अगले दिन से राउत चारकौड़ी को जंगल में चराने ले जाने लगा. लेकिन कुछ ही दिनों में वह उससे परेशान हो गया, क्योंकि वह उसकी कोई बात नहीं सुनती थी. इधर-उधर भागती रहती थी. आखिरकार, उसने उसे चराने से मना कर दिया.

अब वह फिर से पूरे दिन घर पर रहने लगी. कुछ समय बीता, तो उसने दो बच्चों को जन्म दिया – हिरमिट और खिरमिट. अब तो पड़ोसियों की और आफ़त आ गई, क्योंकि चारकौड़ी के साथ हिरमिट और खिरमिट भी उन्हें तंग करने लगे. बूढ़ा आदमी और बूढ़ी दाई परेशान हो गए और उन्होंने चारकौड़ी को उसके बच्चों सहित जंगल में छोड़ दिया.

जंगल में चारकौड़ी अपने बच्चों के साथ मज़े से दिन गुजारने लगी. वे दिन भर जंगल में घूमते और फूल, पत्ते खाते और रात में किसी पेड़ के नीचे सो जाते. इसी तरह कुछ दिन बीते.

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एक दिन एक बाघिन ने उन्हें जंगल में देख लिया और उसके मुँह से लार टपकने लगी. वह हिरमिट और खिरमिट को चट कर जाना चाहती थी. चारकौड़ी समझ गई कि बाघिन का इरादा क्या है? वह डर से कांप गई, फिर अपने बच्चों की खातिर हिम्मत कर बाघिन के पास गई और बोली, “प्रणाम दीदी!”

चारकौड़ी के मुँह से अपने लिए “दीदी” का संबोधन सुन बाघिन अचंभे में पड़ गई. वह सोचने लगी कि इसने “दीदी” कह दिया, अब इसके बच्चों को कैसे खाऊं?

उसने चारकौड़ी से पूछा, “कहाँ रहती हो?”

“रहने की कोई जगह नहीं है दीदी.” चारकौड़ी बोली.

“चल मेरे साथ. मेरी मांद के बगल की मांद खाली है. वहीं रहना.” बाघिन बोली.

चारकौड़ी हिरमिट और खिरमिट को लेकर बाघिन के साथ मांद में चली आई. वह समझ गई थी कि बाघिन उसके बच्चों को नहीं खायेगी, क्योंकि उसने उसे “दीदी” कहा है.

वह अपने बच्चों के साथ बाघिन की मांद के पास वाली मांद में ख़ुशी-ख़ुशी रहने लगी. लेकिन वह सतर्क रहा करती थी, ना जाने कब बाघिन का मन बदल जाए. कुछ दिनों बाद बाघिन ने बच्चे दिए : एक-कांरा और दू- कांरा. बच्चे होने के बाद से वह शिकार पर नहीं जा पा रही थी. अब भूख के कारण वह बकरी के बच्चों को खाने की योजना बनाने लगी.

चारकौड़ी ने बाघिन की आँखों को पढ़ लिया था. वह बार-बार उसे ‘दीदी’ पुकारती, ताकि उसका मन बदल जाए. कुछ देर के लिए बाघिन का मन पिघलता भी, पर बाद में भूख हावी होती, तो वो फिर उसके बच्चों को खाने के लिए लालयित हो जाती.

एक शाम उसने चारकौड़ी से कहा, “तुम तीनों अब से हमारे साथ सोया करो. बच्चे ख़ुश होंगे.”

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चारकौड़ी ने ना-नुकुर की, तो बाघिन बोली, “तीनों न सही, अगर खिरमिट या हिरमिट में से किसी एक को भेज दो, तो….”

चारकौड़ी चिंतित हो गई. अपनी माँ को चिंतित देख खिरमिट बोला, “माँ, मैं आज रात बाघिन की मांद में सोऊंगा और तू मेरी चिंता मर करना. मैं सुबह सही-सलामत आऊंगा.”

उस रात खिरमिट बाघिन की मांद में पहुँचा और बोला, “मौसी मैं आ गया.

उसे आया देख बाघिन बहुत ख़ुश हुई और बोली, “एक किनारे जाकर सो जा.”

खिरमिट एक किनारे जाकर सो गया. बाघिन उसे देखती रही और उसे खाने के बारे में सोचती रही. कुछ ही देर में उसे नींद आ गई और वह सो गई. लेकिन डर के मारे खिरमिट को नींद नहीं आई थी. आधी रात वह उठा और बाघिन के पास गया. देखा, वह गहरी नींद में सो रही है. उसने उसके बच्चे एक-कांरा को उठाया और अपनी जगह सुलाकर उसकी जगह लेट गया.

रात और गहराई, तो बाघिन उठी और एक-कांरा को खिरमिट समझकर खा गई और अपनी जगह आकर सो गई.

सुबह होने पर खिरमिट बाघिन को जगाते हुए बोला, “मौसी मैं जा रहा हूँ.”

उसे सही-सलामत देख बाघिन चौंक गई. उसे समझ नहीं आया कि रात वह किसे खा गई है. उसने अपने बच्चों को देखा, तो उसे एक-कांरा दिखाई नहीं दिया. वह गुस्से से तिलमिला उठी. लेकिन, उस समय गुस्सा दबाकर बोली, “ठीक है जा, लेकिन रात को सोने के लिए आ जाना.”

उस रात जब खिरमिट सोने के लिए बाघिन की मांद में पहुँचा, तो देखा कि बाघिन दू-कांरा को अपनी पूंछ से लपेटकर सोई है.

वह सोच में पड़ गया कि अब ख़ुद को बचाने के लिए रात में क्या करूं?

बाघिन के कहने पर वह एक किनारे जाकर सो गया. इस बार भी वह सोया नहीं. बाघिन के सोने के बाद वह मांद से बाहर आया और इधर-उधर देखने लगा. उसे एक बड़ा सा खीरा दिखाई पड़ा. वह खीरे को अपने स्थान पर रखकर अपनी माँ के पास आ गया.

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रात में बाघिन ने उसकी जगह खीरा खा लिया. सुबह होने पर खिरमिट बाघिन की मांद में गया और बोला, “मौसी मैं जा रहा हूँ.”

उसे फिर से जीवित देख बाघिन आश्चर्य में पड़ गई. वह चला गया और बाघिन उसे देख सोचती रह गई कि रात में मैंने इसकी जगह क्या खा लिया? पास ही दू-कांरा सो रहा था. कुछ देर में बाघिन को खीरे की डकार आई और उसे समझ आया कि उसने खीरा खा लिया है. वह गुस्से से बिलबिला उठी.

इधर खिरमिट अपनी माँ के पास पहुँचा और उसे सारी बात बताते हुए बोला, “माँ, अब हमें यहाँ से भागना पड़ेगा. बाघिन हमें मार डालेगी.”  

उसके बाद वे तीनों वहाँ नहीं रुके और जंगल की ओर भागने लगे. भागते-भागते वे बहुत थक चुके थे, लेकिन बाघिन के डर से उनके कदम रुक नहीं रहे थे. चारकौड़ी अपने बच्चों की हालत देख सोचने लगी कि बेचारों नन्हें बच्चों का क्या होगा?

काफ़ी दूर आ जाने के बाद वह खिरमिट और हिरमिट से बोली, “अब हमें कुछ देर आराम करना चाहिए. तुम दोनों भी तक गए होगे.”

खिरमिट बोला, “माँ बाघिन किसी भी समय यहाँ पहुँचती होगी. उसने हमें देख लिया, तो हमारे प्राण ले लेगी.”

ऐसे में हिरमिट ने सुझाया, “क्यों न हम किसी पेड़ पर जायें. बाघिन पेड़ पर चढ़ नहीं पायेगी और हम सुरक्षित रहेंगे.”

चारकौड़ी और खिरमिट को भी ये बात जम गई और वे तीनों एक पेड़ पर चढ़ गए.

उधर बाघिन खिरमिट को ढूंढते हुए उनकी मांद में पहुँची, लेकिन वहाँ उसे कोई नहीं दिखा. वह समझ गई कि तीनों भाग गए हैं. वह उनके कदमों के निशानों का पीछा करने लगी और कुछ ही देर में उस पेड़ के नीचे पहुँच गई, जहाँ चढ़कर वे तीनों आराम कर रहे थे.

बाघिन ने सिर उठाकर उन्हें देखा और बोली, “तुम तीनों यहाँ बैठे हो? रुको अभी तुम तीनों का काम तमाम करती हूँ.”

बाघिन की बात सुनकर हिरमिट डर गया, तब चारकौड़ी उसे समझाते हहुये बोली, “डरो मत, ये पेड़ पर नहीं चढ़ सकती. इसलिए हम यहाँ सुरक्षित हैं.”

तभी खिरमिट बोल पड़ा, “दे तो दाई सोने का डंडा.”

ये सुनकर बाघिन सोचने लगी कि सोने का डंडा इन्हें कहाँ से मिल गया. वो बोली, “अब तुम मुझे डंडे से डराओगे.”

तभी चारकौड़ी खिरमिट से बोली, “ ये ले खिरमिट सोने का डंडा.”

और उसने पेड़ की एक डाल तोड़कर खिरमिट की ओर फेंकी. खिरमिट ने वह डाल बाघिन के ऊपर मारा. डंडे की चोट से बाघिन कराह उठी और पेड़ से कुछ दूर हटकर खड़ी हो गई, लेकिन वहाँ से गई नहीं.

इधर तीनों बकरियाँ परेशान थीं कि बाघिन के रहते पेड़ से कैसे उतरे? और उधर बाघिन परेशान थी कि कब तक इन बकरियों का पेड़ से उतरने का इंतज़ार करते रहूं.

तभी बाघिन को वहाँ से तीन बाघ गुजरते हुए दिखे. उसमें से सबसे बड़े बाघ का नाम बंडवा था. बाघिन बंडवा के पास गई और उसे बताया कि पेड़ के ऊपर तीन बकरियाँ बैठी हैं. यह सुनकर बंडवा सहित अन्य दोनों बाघों के मुँह में पानी आ गया और वे तीनों बाघिन के साथ उस पेड़ के नीचे पहुँचे, जिसके ऊपर बकरियाँ बैठी हुई थी.

उन बाघों की देखकर खिरमिट और हिरमिट डर गए. तब चारकौड़ी उनका ढांढस बंधाते हुए बोली, “डरो मत. ये सब पेड़ पर नहीं चढ़ सकते. जब तक हम पेड़ पर हैं, सुरक्षित हैं.”

तभी उन्होंने देखा कि बंडवा पेड़ के नीचे खड़ा हो गया. उसके ऊपर बाघिन खड़ी हो गई, बाघिन के ऊपर एक बाघ और अब उसके ऊपर दूसरा बाघ चढ़ने लगा था.

अब चारकौड़ी भी डर गई कि इस तरह तो ये सब हम तक पहुँच जायेंगे. वह सोचने लगी कि अब अपने बच्चों को कैसे बचाए. तभी खिरमिट बोल पड़ा –

दे तो दाई सोने का डंडा,

तेमा मारौ तरी के बंडा

यह सुनकार बंडवा डर गया और भागने लगा. उसके भागते ही बाघिन नीचे गिरी और उसके बाद दोनों बाघ भी. वे सब भी भागने लगे. उन्हें भागता देख चारकौड़ी अपने बच्चों से बोली, “चलो बच्चों अब हमें भी पेड़ से उतरकर भागना चाहिए.”

तीनों तुरंत पेड़ से उतरे और गाँव की ओर भागने लगे और सीधा बूढ़े आदमी के घर पहुँचकर रुके. कुछ दिन बकरियों के बिना रहकर बूढ़ा आदमी और बूढ़ी दाई भी उकता गये थे. उन्हें अपनी बकरियों की याद आने लगी थी. बकरियों को वापस आया देख वे बहुत ख़ुश हुए. उस दिन एक बाद से वे सब ख़ुशी-ख़ुशी साथ रहने लगे.    

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